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जब सइयाँ भये कोतवाल फिर डर काहे की

वैचारिक प्रवाह
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यह शीर्षक मुझे भी अजीब लग रहा है परंतु मुझे कुछ ऐसा ही आभाष हो रहा है ईश्वर करे मेरा यह केवल भ्रम मात्र हो ,,परंतु आज जीत के जश्न में जिस तरह सपाइयों ने अपना आपा खोया तीन या  चार जगह हादसों की खबर सुनने को मिली उससे तो यही डर सता रहा है कि पुराने सपाई कहीं अपने पुराने ही रंग में फिर से न वापस आ जाएँ , खैर यह तो वक्त ही बताएगा कि क्या होता है |

आज भारत के कई राज्यों में लोकतन्त्र की जीत का जश्न मनाया जा रहा है लेकिन यह चिंता का विषय है भारत की राष्ट्रीय पार्टियां जनता में अपना विश्वाश खोती जा रही हैं कांग्रेश के अपने बहाने है और बी0 जे0 पी0 के अपने अफसाने लेकिन सच्चाई यही है कि यह दोनों पार्टियां सत्ता और जनता से निरंतर दूर होती जा रही हैं ,,तो क्या अब भारत का भविष्य क्षेत्रीय पार्टियों की हाथों में चला जाएगा और अगर निकट भविष्य में कहीं मे यह आशंका सच साबित होती है तो फिर भारत के भविष्य का क्या होगा क्षेत्रीय पार्टियां जो केवल अपने राज्य तथा अपने पार्टी के विस्तार में ही दुबली होती रहती हैं वह वैश्विक पटल पर भारत की क्या तस्वीर पेश करेंगी ,,किसी विषय विशेष पर निर्णय लेने में जब तमाम क्षेत्रीय पार्टी के नुमाइंदे अपने अपने क्षेत्र की जनता तथा अपनी अपनी पार्टियों की प्राथमिकताओं को तरजीह देने लगेंगे तो विषय विशेष पर एकमत होना लगभग असंभव हो जाएगा या फिर इतना विलंब हो जाएगा कि विषय विशेष की प्रासंगिकता ही खत्म हो जाये कोई वाम मार्गी है तो कोई दक्षिण पंथी तो कोई पंथ विशेष के प्रति अत्याधिक सद्भाव रखता है तो कोई धर्म विशेष से अत्याधिक नफरत करता है कल्पना करने को तो यह कल्पना की जा सकती है कि देश हित में सभी दल एक स्वर में हुंकार भरेंगे लेकिन क्या यह संभव प्रतीत होता है ?

देश की बागडोर संभालने वाली कांग्रेश तथा देश की प्रमुख विपक्षी दल बी0 जे0 पी0 दोनों ही प्रादेशिक चुनाव में अपनी खोयी हुई साख को वापस पाना चाहते हैं लेकिन क्या इसके लिए इन दोनों पार्टियों के पास सत्यनिष्ठा है ,,एक तरफ कांग्रेश जिसके आका जो अपने कारिंदों के द्वारा सुनाये  प्रशस्ति गान  सुनकर भाव विभोर रहते हैं तथा चुनाव के समय अपने स्वप्नलोक से बाहर आकर पंथ  लुभावन वादों से जनता को भ्रमित करने का प्रयाश करते हैं लेकिन उनका यह प्रयाश निष्फल हुआ उसका स्पष्ट कारण भी था कांग्रेश आपने कार्यकाल में अपने नाम जितनी उपलब्धियां दर्ज करवा पाई है उसे जनता जो कभी नही जानती थी तमाम समाचार पत्रों एवम अन्ना तथा बाबा रामदेव जैसे समाज सेवियों के आंदोलन ने जनता को अच्छी तरह यह समझा दिया कि कांग्रेश क्या करती रही है और क्या कर रही है तथा  क्या कर सकती है ,,,और प्रमुख विपक्षी दल भा0 ज0 पा0 उसके तो कहने ही क्या उसे जनता से अधिक अपने नेताओं की पड़ी है कोई प्रधानमंत्री की कुर्सी के लिए मरा जा रहा है तो किसी की खुद की प्रतिष्ठा पार्टी और शायद देश से भी अत्याधिक उच्च हो गई है ,,तमाम मीडिया के सर्वेक्षकों ने मोदी फैक्टर को जनता में प्रभावी कहा तो भा0 ज0 पा0 को क्यों मोदी से गुरेज है और अगर उनसे गुरेज ही है तो उन्हे पार्टी से निकाल क्यों नही देती (वैसे हो सकता है कुछ बड़े नेताओं के अहं के कारण भा0 ज0 पा0 में निकट भविष्य में यह कदम उठाने का प्रयाश भी किया जाये अभी तो पर कतरने की कवायद तो हो ही रही है और कतरा भी जा रहा है अब यह अलग बात है कि कैंची की दिशा उल्टी हो गई है ध्यान देना होगा यह वही भा0 ज0 पा0 है जिसने यू0 पी0 के अपने सबसे कद्दावर नेता कल्याण सिंह को अपने अहं के कारण ही बाहर का रास्ता दिखा दिया जो पार्टी को शिखर पर पंहुचाने वालों में लगभग शीर्ष पर ही थे सुषमा स्वराज का हश्र तो सभी देख रहे हैं |

परंतु मै यहाँ पार्टी विशेष की जीत या हार का विश्लेषण नही करना चाह रहा हूँ लेकिन अगर इन दोनों राष्ट्रीय पार्टियों का आगामी लोक सभा चुनावों में भी यही हश्र रहा (जो कि दिखाई पड़ रहा है ) तो देश की जनता तमाम क्षेत्रीय पार्टियों के हाथों की कठपुतली मात्र बन कर रह जाएगी लोकतन्त्र  तो  निरंतर जीतता रहा है और जीतता रहेगा लेकिन जनता और देश दोनों ही हार की कगार पर जा कर खड़े हो जाएँगे या शायद हार ही जाएँगे ,,आज तमाम भारत में कमोबेश यही स्थिति है अगर इस पर समय रहते नही सोचा गया तो निकट भविष्य कहीं ऐसा न हो कि भारत मात्र कहने को ही भारत हो लेकिन इसके राज्यों के निवासियों का देश प्रेम भी राज्य तक ही सीमित न हो जाय |

😳************************जय भारत *************************😳

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