Menu
blogid : 2834 postid : 523

आग्रही लेखन अथवा हठ्वादिता

वैचारिक प्रवाह
वैचारिक प्रवाह
  • 24 Posts
  • 472 Comments

यूं तो ब्लागिंग कि दुनिया बहुत बड़ी है प्रतिभा की दृष्टि से भी और लेखन की दृष्टि से भी, परंतु इसे अभी बहुत लंबा रास्ता तय करना है अभी यह उस परिंदे की तरह है जो विस्तृत व्योम में अपने पंखों को परवाज़ भरने के लिए तैयार कर रहा है, जी हाँ इसे अभी बहुत लंबा मुकाम हासिल करना है यह तो मात्र प्रारम्भ भर है जिसकी राह में अभी से कांटे बिछाने के उपक्रम किए जा रहे है एक तो वैसे ही पाठकों की संख्या उँगलियों पर गिनी जाने लायक है उस पर तुर्रा ये कि भारत में भी ई पाठन के बारे में न तो लोगों में उतनी उत्सुकता है और न ही पढ़ने का साधन ,,जबकि इस विधा के लेखन में पाठक और लेखक के मध्य सीधा संवाद होना संभव होता है जो कि लेखक /रचनाकार और पाठक के लिए और भी अधिक वैचारिक सम्प्रेषण का सस्क्त माध्यम है |

इस माध्यम के लेखकों के एक बहुत बड़े तबके में एक बहुत विकृत प्रवित्ति का भी विकाश भी हो रहा है जो लेखन को उर्वर बनाने के लिए किसी भी दृष्टिकोण से उचित नही कहा जा सकता इस माध्यम के लेखन में हठवादिता अपने चरम को छूने के लिए व्याकुल है लेखको की आत्ममुगधात्मक प्रवित्ति लेखन के इस माध्यम में निरंतर जहर घोलने को आतुर है इस प्रवित्ति से मै खुद भी अछूता नही खुद आपकी भी प्रवित्ति विश्लेषणात्मक होनी चाहिए अपने हृदय के भावों पर आपका नियंत्रण होना चाहिए , आलोचनाओं को आलोचना की दृष्टि से नही वरन मात्र एक विद्यार्थी की तरह ग्रहण करना चाहिए और एक वैज्ञानिक की तरह उसका निष्पक्ष एवम तथ्यात्मक विश्लेषण भी करना चाहिए ,,निष्पक्षता अपने आपमें एक अति सुंदर शब्द है लेकिन तभी तक जब तक वह अपने वास्तविक रूप में आपके सामने रहता है अन्यथा इससे बहुत सारी विषमतायें भी उत्पन्न हो जाती हैं आप को जो वस्तु सही / सत्य लगती है क्या वास्तव में वह वस्तु उतने ही परिमाप में सही है हम इस विषय में बहुत कम सोचते है या शायद सोच ही नही पाते दरअसल हमारी सोच का दायरा अत्याधिक सीमित है (एक प्रसंग –गैलीलियो ने जब खुर्दबीन का आविष्कार किया तो उसने समाज के गणमानय व्यक्तियों को उसका प्रदर्शन करने हेतु आमंत्रित किया उस समय के सबसे अधिक गणमानय व्यक्ति धर्माधिकारी ही हुआ करते थे जिनका प्रभाव समाज के हर वर्ग पर था किसी पर कम और किसी पर अधिक राजशाही भी उनके इशारों पर नाचती थी तभी तो पृथ्वी को खुद के कार्य को प्रमाणित करने में सैकड़ों वर्ष लग गए थे अन्यथा यही भ्रांति प्रचलित थी की समूचा सौरमण्डल इस पृथ्वी का चक्कर लगाता है ,,तो जब गैलीलियो की खुर्दबीन से लोगों ने देखा तो सहसा लोगों को यकीन ही नही हुआ जो हम अपनी नंगी आखों से देख रहे हैं वो सत्य है या जो खुर्दबीन दिखा रही है वो ,, लोगों को जब वह जिसे सबसे अधिक खूबसूरत मानते थे उसके चेहरे ही सबसे अधिक बदसूरत दिखाई पड़ने लगे तब लोगों ने सोचा यह गैलीलियो की कोई चाल है यह सत्य नही हो सकता जो उक्त खुर्दबीन के माध्यम से उन्हे नजर आ रहा है गैलीलियो को खुद की बनाई खुर्दबीन को प्रमाणित करने में बहुत पापड़ बेलना पड़ा )

तो हमने भी एक दायरा निर्मित कर लिया है अपने लिए जिसमें बंद होकर हम जीते हैं (इसका अर्थ अश्लील स्व्छ्न्दता नही ) वही चारदीवारी हमारे सोच को निर्देशित करती है अपनी बनाई हुई दीवारों मे कैद उसी उपवन मे हम विहार करते हुए सोचते हैं यही एकमात्र सत्य है कुछ ऐसा ही आलम निष्पक्षता का भी है मुझे नही पता आज तक कोई भी सार्वभौमिक रूप से निरपेक्ष हुआ है हाँ इसका प्रयाश अवश्य करना चाहिए जिसमे हम काफी हद तक चाहें तो सफल भी हो सकते हैं ,, ये धर्म जाती इत्यादि बुद्धिवादियों के चोचले हैं वो बुद्धिवादी भी खुद की निर्मित चारदीवारी में कैद हैं उस चारदीवारी के अंदर ही उन्हे सारा संसार नजर आता है उन्हे वही सत्य लगता है और हम उनके दिवास्वप्नों में खुद को ढालने का प्रयाश करने लगते हैं ठीक किसी तेज नशे के आगोश में समाये व्यक्ति की तरह जिसकी दुनिया केवल नशे तक ही सीमित है ,,

मेरे कहने का आशय यह है कि लिखने का अर्थ यह कदापि नही होना चाहिए कि पाठक /आलोचक आपके विचारों से संतुष्ट ही हो , हो सकता सकता है वह आपको तर्क में पराजित न कर पाये (क्योंकि आप अपने तर्क की धार को निरंतर पैना करते रहें हैं ) लेकिन फिर भी वह आपको पराजित कर देगा क्योंकि आप अपने तर्कों से उसे संतुष्ट नही कर पाएंगे (मन के जीते जीत) तो आप यहाँ उसके मन को जीत नही पाएंगे (तो शेष आपके पास आत्ममुग्धता ही बचेगी) यहाँ पटल पर आप अपने विचारों को रख कर यह आपेक्षा करते हैं कि लोग आपको सराहें क्यों ?(क्या आपके अंदर यह डर है कि आपके विचार सही नही है शायद हाँ तभी तो आप दूसरे से उसे प्रामाणिक कहलवाना चाहते हैं) तो अगर लेखन सत्य या फिर सत्य के करीब ही हो परंतु हठ्वादी न हो तो उसका होना सार्थक है (सौम्य शीतल जल प्रवाह बड़े बड़े प्रस्तरों को भी चूर चूर कर अपने आगोश में समेट लेता है) अन्यथा हठ्वादी लेखन दूसरे के अधिकारों का एक तरह से हनन ही समझा जाएगा ,,

तमाम विचारकों चिंतकों ने अपने बंद दायरों के अंदर आपको भ्रमण करवाना चाहा उनने चाहा कि आप उनकी कैद को स्वर्ग कहें ,क्या ऐसा संभव हुआ और अगर हुआ भी तो कुछ समय तक जब तक कि लोग उस विचार के विरोध की ताकत अपने अंदर समेत नही पाये या फिर उनका स्वप्न भंग नही हुआ और स्वप्न को भंग होना ही था क्योंकि आपका विचार उनकी प्रकृति के अनुकूल नही था ,,

हिटलर ने साम्यवाद का पूरे मनोयोग से अपनी सम्पूर्ण शक्ति के साथ  विरोध किया लेकिन उसका यह विरोध कब तक सफल रहा यहूदियों का उसने उन्मूलन करने का प्रयाश किया लेकिन निष्फल ,,अकबर जिसे महान साम्राज्यवादी शासक कहा जाता है अपने आविष्कृत पंथ “दीन ए इलाही’’ के प्रचार के लिए अनवरत प्रयत्नरत करता रहा लेकिन व्यर्थ निष्फल ,, कहने का तात्पर्य यह कि हठवाद से आप कुछ समय के लिए विजयी होने का आनंद ले सकते हैं लेकिन समाज का काफी लंम्बे समय तक के लिए नुकसान करते हैं ,,

आज अगर विश्व में समस्याएँ है तो उसके अंतर में कहीं न कंही हठ्वाद भरा हुआ है आप दूसरे से खुद को उत्तम समझते हैं ऐसा क्यों ,हो सकता है आप समझते हों कि आप बुद्धिजीवी हैं लेकिन क्या वास्तव में आप हैं आप अपने ही बंद दायरों में कैद हैं अरे अगर आप अच्छे हैं तो पूरी प्रकृति आपको अच्छा कहेगी फिर मनुष्य की क्या बिसात , आप क्यों कभी भिक्षुक और कभी उग्र दस्यु बन जाते हैं |

लेखन आप को ही नही अपितु समाज को भी प्रतिबिम्बित करता है आपके हर शब्द आपकी पूरी जीवन शैली को उजागर करते हैं कि आपका परिवेश आपकी परवरिश इत्यादि ,,अधिकतर मैं अपने मित्रों से कहता हूँ कि भाई गाली न दो इसका कारण उन्हे गाली देने से रोकना नही है बल्कि उन्हे खुद को नंगा होने से बचाना है आखिरकार वे मेरे मित्र जो ठहरे क्योंकि गंदगी तो आखिर कार गंदे नाले से ही निकलती है न, और अगर कभी एकाध दो छीटे किसी के ऊपर पड गए तो उसका कदापि यह अर्थ नही हो गया कि वह व्यक्ति जिसके ऊपर छीटे पड़े वह गंदा हो गया, अरे वह तो कहीं भी उन छीटों को पानी से धूल कर अपनी दुर्गंध दूर कर लेगा लेकिन गंदा नाला क्या करेगा, तो लेखन में भी यही प्रक्रिया रहती है आप किसी को बुरा कह कर खुद को व्यक्त करते हैं अरे किसी के कर्म बुरे हो सकते हैं लेकिन हम भी उसके समक्ष खुद को गंदा घोषित करने का प्रयाश क्यों कर रहे हैं आलोचना करिए लेकिन उसमें भी एक मर्यादा रहनी चाहिए |

जय भारत

Read Comments

    Post a comment

    Leave a Reply

    Your email address will not be published. Required fields are marked *

    CAPTCHA
    Refresh