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दस्तक

वैचारिक प्रवाह
वैचारिक प्रवाह
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चुनावी दौर लगभग खत्म हो चला है तमाम पार्टियों के नेताओं ने अपने दिव्या बालन टाईप लटको झटकों से से जन समूह को अपनी तरफ आकर्षित करने का प्रयाश किया संभवतः कुछ समय पश्चात पार्टी विशेष की सरकार भी बन जाएगी ,, अजीब विरोधाभाष है, इस लोकतन्त्र का भी ! समाचार एजेंसियों ने कहा की लगभग 57% मत पड़े ,पहले तो और कम पड़ा करते थे भाई यानि की अगर सामान्य गणना की जाये तो सरकार बनाने वाली पार्टी विशेष को शायद 25 या 30 फीसदी ही मत हासिल हुए फिर भी पार्टी विशेष बहुमत मे है यानि 100 फीसदी मे से मात्र 25 या 30 फीसदी ही तो बाकी के 70 फीसदी कम या अधिक तो कहीं के नही हुए और अगर बिना किसी स्ंविधानी चस्मे के देखा जाये तो यह तो कहीं से भी बहुमत नही कहा जाएगा ,लेकिन तमाम दुनिया ने इसी को मान्यता प्रदान की है |
इस चुनाव मे मैंने कई बार कई पंथ विशेष के झण्डाबरदारों के मुह से सुना कि पंथ विशेष की भावनाएं अयोध्या मुद्दे को लेकर आहत हैं उनका यह गम न जाने कब कम होगा ‘होगा कि नही और होगा’ तो किस कीमत पर ?,,  लेकिन मुझे यह नही समझ आता कि उन तमाम बहुसंखयकों का क्या ? जिनके तन मन और स्वाभिमान सैकड़ों वर्षों से आहत होते रहें हैं और लगातार होते रहे हैं शायद यही लोकतन्त्र की ज्वलंत उद्धहरण है या फिर यह बहुसंख्यक इसी काबिल भी हैं सनातन धर्म के मानने वाले जो ठहरे और क्योंकि इन लोगों ने लगातार अपनी उदारता के कारण आताताईयों को हमेशा आमंत्रण दिया उनका आतिथ्य सत्कार किया ( अतिथि देवो भव ) है और शायद करते भी रहेंगे और अब तो सनातन धर्मियों की आत्महंता प्रवित्ति भी बन चुकी है ग्रन्थों मे कहा गया है पृथ्वी क्च्छप के पीठ पर टिकी लेकिन अब तो यह लगता है उक्त कच्छप ने अपना आवरण भारतीय महामानवों को दे दिया है तभी इस धरा पर लगातार हिंसा सहन करने वाले महात्माओं का अवतरण होता रहा है लेकिन इसी भूमि पर अवतरित गीता के सार को इसी धरती के महामानव ने भुला दिया यदि याद रखा होता तो आज इस देश की गरिमा कुछ और ही होती वह गीता के कृष्ण जो इस भारतीय महामानव मे अर्जुन का प्रतिरूप देखते थे शायद उन्हे यह नही पता था कि यह बसुंधरा कायरों का गढ़ बन जाएगी जो सत्ता के लोभ में अपना स्वाभिमान बेंच देंगे फिर भी सत्ता तो मृग मरीचिका ही रहेगी , यह सत्ता नाम की राजकुमारी भला किसी शिखंडी का वरण कैसे करेगी ,, भारत लगातार सैकड़ों वर्षों तक गुलामी मे पिसता रहा और आज भी स्वप्निल आजादी मे खुद को आजाद समझ रहा है ताज्जुब है यह वही महामानव है जिसने वैश्विक जगत मे अपनी अमित छाप छोड़ी जिसके कारण उस कथित सभ्य दुनिया को ज्ञान का प्रकाश मिला वही maमहामानव आज अपने खुद के हक के लिए लड़ पाने मे भी असमर्थ है !
अभी कुछ दिनों पूर्व यह देश इस देश मे एक चिंगारी भड़की थी जिसे देख कर लग रहा कि शायद यह चिंगारी दावानल का रूप लेगी मुझे लगा कि अर्जुन का अवतरण होने वाला है लेकिन वह तो मेरा भ्रम था शायद ! शिखंडियों के देश मे अर्जुन और कर्ण जैसे वीर को हासिए पर धकेल दिया जाता है ,, या फिर हो सकता है कि यह 1857 की पहली चिंगारी हो और इस यज्ञ कुंड में (राजबाला) वीरबाला की प्रथम रक्त आहुती हो अभी ऐसी तमाम आहुतियाँ बाकी हों जो इस बसुंधरा को रक्तिम आभा से रंग कर एक नए सूर्य स्वागत करने की तैयारी कर रही हों ,,कैसी विडम्बना है इतिहाsस अपने आप कि पुनः दोहरा रहा है वैसे भी इस पृथ्वी पर कुछ नया नही होता यह तो हमारी स्मृति है जो पुरातनता में भी नवीनता के दर्शन करती है अन्यथा सब कुछ तो वही है करोड़ों वर्षों पूर्व जैसा ( किसी संदर्भ में कहीं पढ़ा था कि अमेरिका क्या कोलंबस के खोजने के पूर्व नही था ,प्रत्युत्तर में संवाद था कि “था तो लेकिन उसकी प्रकृति है बार बार गुम हो जाने की उसे बार बार खोजा जाता है फिर भी वह गुम हो जाता है ’’) तो इस आंदोलन में भी मुझे स्वतन्त्रता संग्राम की झलक दिखाई पढ़ी एक तरफ गांधी तो दूसरे तरफ सुभाष चन्द्र और बीच में दोनों का चयन करने हेतु जनता और जनता ने दोनों को चुना एक ने प्रस्तर को घिस कर गरम किया तो दूसरे ने चिंगारी पैदा की अब काल ही यह तय करेगा कि वह चिंगारी कभी शोला बन पाएगी या नही लेकिन चलिए यह तो पता चला कि भारतीय महामानवों के खून मे अभी भी कुछ हरारत बाकी है |
तो प्रसंग था चुनाव का अब देखना है कि किसकी सरकार बनती है एक बात तो तय है कि जनता की तो नही बननी है किसी प्रदेश में और चाहे जिसकी भी बन जाये तो सरकार राज तो कायम रहेगा ,,
और सुना है कि अन्ना फिर से स्वस्थ हो गए हैं अजीब इत्तेफाक है इधर चुनाव खत्म हुआ और उधर अन्ना स्वस्थ हो गए क्या ट्यूनिंग है भाई (और अनशन भी काफी मजेदार रहा टीम ने बुखारी की चरण वंदना की मुझे तो यह लग रहा था की कहीं यह पॉप तक भी न पहुँच जाएँ हो सकता है वीजा न मिला हो)   खैर जो भी हो मंशा साफ रहनी चाहिए बस ! मेरी तो ईश्वर से यही कामना है वह हमेशा स्वस्थ रहें जो मजा इंतजार में है वह विशाले यार में कहाँ ’’ और समाचार चैनलों की भी रोजी रोटी चलती रहेगी और हो सकता है महामानवों के खून में भी शायद उबाल आ जाय……और अंत मे भाई सवर्णों को दलितों का भय दिखाओ, और दलितों को सवर्णों का भय, मुसलमानों को आर एस एस का और हिंदुओं को कसाब का सिमी का लश्कर का ,,                                                                                                                                                                                  तो भाई जीत लो चुनाव 🙂 🙂 🙂

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