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15 अगस्त पर विशेष कोटिशः नमन शहीदों को

वैचारिक प्रवाह
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प्रथम भारत के उन वीर सपूतों ( ज्ञात तथा अज्ञात ) को कोटिशः नमन जिनके कारण अधूरे आजाद भारत में हम सांस ले पा रहे हैं ,,तथा बंटवारे के उपरान्त बचे उन तमाम भाईयों तथा उनके वंशजों (जो भारतीय संस्कृति से तादात्म्य नही बैठा पा रहे हैं ) से मुझे हमदर्दी है जो भारत में कारण विशेष से विवशता में रहने को मजबूर हैं ,,तथा बंटवारे के अधिष्ठाता उन दम्भी सत्ता लोलुपों चाटुकारों को धिक्कार है जिनके कारण बंटवारा अपने चरम लक्षय को प्राप्त नही कर सका एवम वर्तमान सत्ता तन्त्र के परिहास पूर्ण कथन तथा कर्मों के कारण मुझे उससे सहानुभूति है |

विगत एक माह से मन अत्याधिक आक्रोशित है अंतर को एक ही प्रश्न बार बार मथ रहा है क्या हम वास्तव में आजाद हैं (कल गृहमंत्री{ऐसा गृहमंत्री तो भारत का प्रतिनिधित्व नही करता} का मीडिया को दिया गया बयान कि (अन्ना हजारे का अनशन अलोकतांत्रिक है ) यह शब्द तो अंग्रजों के दौर की याद दिलाता है यही तो उनके भी शब्द हुआ करते थे) |

पूना में अंगरेजी हुकूमत की तर्ज पर जन्लियावाला बाग़ हत्याकांड एवं उसमे मारे गये देश के नागरिकों को हार्दिक श्रधा सुमन अर्पित है |
आज हम जिन परिस्थियों में जी रहे हैं उससे कुछ / बहुत से लोग संतुष्ट होंगे ,,लेकिन सामान्य देशवासी के अंतर में ज्वाला धधक रही है ऐसी आजाद गुलामी के प्रति रोज अंगरेजी हुकूमत की तर्ज पर निर्दोष नागरिकों के ऊपर गोलीबारी ,,देश के तमाम कर दाताओं के पैसों की बंदर बाँट जिसकी जबाब देही से बचने के कुत्सित हथकंडे क्या यही आजाद भारत है ?
आज सरकार का सही अर्थ यह हो गया है कि जनता उन्हें फर्शीसलाम करे ! क्यों ? क्या वह जनप्रतिनिधि जो उसी जनता के अधिकार एवं आवाज को बुलंद करने के लिए संसद में बैठता है उसका भविष्य हो गया है ,,उसकी जबाब देही कुछ भी नही है सामन्ती राज जो है ,, चंद मुठ्ठी भर लोग हाँ मुठ्ठी भर लोग भारत की जनसंख्या के सामने मुठ्ठी भर लोग जिन्हें जनता जब चाहे मसल दे ,, वही लोग जनता को सरेआम नंगा करके लूट रहे हैं और जनता आज तक अपने धैर्य का परिचय देती चली आ रही है ,, क्या इतनी सहन शक्ति काफी नही इतनी परीक्षाये कम है ? आखिर आज की राजशाही क्या चाहती है ,,क्या यही कि पुनः आजादी के लिए फिर से रक्तरंजित संघर्ष हो ! हाँ रक्त रंजित संघर्ष क्योंकि राजशाही गोलियों से तमाम अपने हक़ के लिए लड़ने वाले आजादी के लिए पुनः शहीद हो जायेंगे,,लेकिन वही गोलिया जब राजशाही का रुख करेंगी तब ? क्योंकि भारतीय सैनिक भी एक आम नागरिक ही है उनके भी परिवार हैं भाई हैं बहने हैं |
आज देश हित के लिए अनशन करने वाले को अलोकतांत्रिक कहा जा रहा ऐसा ही अलोकतांत्रिक तरीका तो वन्दनीय सुभाष चन्द्र ,भगत सिंह ,राम प्रसाद आदि ने भी अपनाया था तभी तो उस समय देश के खेवनहारों ने उन्हें तिरष्कृत किया आज देश आजाद है उन क्रांतिकारियों को उस समय के प्रचार के लटके झटके नही आते थे जिसके कारण देश के सभी लोग उन्हें जान समझ पाते आज आप स्वयं ही आंकलन करें क्या अहिंसात्मक तरीके से प्राप्त की गयी अधूरी आजादी में जितने लोगों की जाने गईं थीं उतनी या उससे अधिक जाने अगर हिंसात्मक तरीके से प्राप्त आजादी में चली जातीं तो क्या बुरा था कम से कम हमे एक अखंड एवं पूर्ण भारत तो प्राप्त होता ,,उस समय देश के कुछ लोगों का विचार था की इस तरीके से आजादी नही हासिल की जा सकती ,,परन्तु यह याद रखना होगा वह क्रांतिकारी देश के अपमान के विरुद्ध पूरी ताकत से अंग्रेजों से लड़ने के लिए खड़े हुए थे न कि ( स्वयं अपमान सहने के कारण अंग्रेजों के विरुद्ध थे ) एक पहाडी नदी पूरे साल बरकार नही रहती परन्तु उसकी प्रचंड धारा के सामने क्षण में ही बड़े बड़े शहतीर धराशायी हो जाते हैं आज भी क्रांतिकारियों को उचित सम्मान नही दिया जाता कुछ लोग उन्हें आतंकवादी कह कर अपना यशवर्धन करते हैं (आतंकवाद यानी की संगठित क्राईम इस शब्द/विचारधारा की शुरुवात शायद इटली से हुई अच्छा है आज देश के इटली से अन्तरंग सम्बन्ध हैं) हो सकता है की कल को न्यालय में अन्याय के विरुद्ध वाद दायर करने वाले को भी अलोकतांत्रिक आचरण वाला घोषित करके कारागार में डाल दिया जाय,,आज भारत के प्रधानमंत्री का भाषण सुना तमाम प्रंससात्मक शब्द उन्होंने कहे कांग्रेश की इतनी उपलब्धियों को उन्होंने गिनवाया गोया यह चुनावी प्रचार का एक नया मंच हो वैसे भी यह प्रथा नई नही है इस राह पर सभी चलते रहें हैं उन्होंने भी वही मार्ग अपनाया अपना चेहरा सौन्दर्य प्रसाधनों से छुपाते रहे ,.,उन्होंने भी कुछ नया नही किया ,,,,,,,,,,,
हम हिंद देश के वाशी हैं यह बसुन्धरा मेरी माता है ,,
कुछ के लिए यह भूमि है और सब का भाग्य विधाता है,,
जो भगवे को आतंकी कह खुद को सम्मानित करते हैं ,,
वह क्या जाने इसके रंग में किस किस के जीवन दिखते हैं,,
इस भगवे की खातिर ही जाने कितनो ने आहुतियाँ दी ,,
हम क्यों भूले उस इतिहास को जिसने इतनी जाने लीं ,,
सिंचित रक्त से हुई बसुन्धरा बर्बरता से आहत हो ,,
लाज बचाने की खातिर सती हुईं क्षत्राणी जो ,,
उनकी आहें अब भी कानों में सबके गूँज रहीं ,,
ऐसा दौर न आये फिर से भगवत गीता कंठस्थ हुई ,,
कृष्ण जन्म लें या ना लें हम उनका कार्य करेंगे अब ,,
फिर से शस्त्र उठाएंगे लाज न लुटने पाए अब ,,
अताताईयों की खातिर फिर से तांडव रच देंगे हम ,,
रूद्र ह्रदय में बसे हुए हैं फिर मृत्यु का है किसको गम ,,
एक मंथरा के हाथों की कठपुतली है ध्रितराष्ट्र हुआ ,,
देश बेचने को आमादा वह असुरवृत्ति का दास हुआ ,,
शिखन्डी के झुण्ड खड़े हो अपना गाल बजाते हैं ,,
उसके स्वर में स्वर को मिलाकर गर्दभ गान सुनाते हैं ,,
एक विभीषण के कारण रावण का था पतन हुआ ,,
यहाँ विभीषण भरे पड़े हैं किस रावण का अंत हुआ ,,
रावण फिर भी ज्ञानी था धर्मों का था भान उसे ,,
ध्रितराष्ट्र तो अंधा है देश धर्म का ज्ञान किसे ,,
आज देश है मांग रहा वीरों की आहुतियाँ फिर ,,
वीर भगत आजाद विस्मिल की आत्मा व्याकुल फिर,,
देश युवावों का ही है वह ही इसका भविष्य रचें ,,
वीर सुभाष हैं पथ दर्शक फिर से एक इतिहास रचें,,
देश विश्व में आलोकित हो गौरव इसका फिर वापस आये,,
करें कर्म कुछ ऐसा हम भारत स्वर्णिम आभा से रंग जाए,,
मित्रों सम्पूर्ण लेख मय कविता जल्दी में लिखा गया है तो त्रुटियाँ होना स्वाभाविक है …………..जय भारत

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