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परोपकार या आत्मा का व्यापार ?

वैचारिक प्रवाह
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,न्यायालय ने यह भी कहा कि किसी भी व्यक्ति की आस्था एवम विश्वाश में हस्तछेप करना और इसके लिए बल, उत्तेजना या लालच का प्रयोग करना या यह दुष्प्रचार करना कि उनका धर्म /मत दूसरे से अच्छा है ,ऐसे तरीकों का इस्तेमाल करते हुए किसी व्यक्ति का मतांतरण करना किसी भी आधार पर न्याय संगत नही कहा जा सकता ,इस प्रकार के धर्मांतरण से हमारे समाज की उस संरचना पर आघात होता है जिनकी रचना संविधान निर्माताओं ने की थी ,,पुनः 25 जनवरी 2011 उपरोक्त पंक्तियों में कुछ संसोधन करते हुए माननीय न्यायलय ने कहा , घटना को घटे बारह वर्ष से अधिक समय व्यतीत हो चुका है ”किसी भी व्यक्ति के धार्मिक विश्वाश में किसी भी प्रकार का हस्तछेप करना न्यायोचित नही है”इस प्रकार विविध न्यायालयों ने व् समय समय पर गठित अनेकों जांच आयोगों ने स्पस्ट कहा है कि विदेशी धन की ताकत से गठित धार्मिक संगठनों के द्वारा दलितों व् आदिवासियों के बीच छल फरेब से युक्त धार्मिक प्रचार प्रसार मे धार्मिक संगठन संलग्न हैं ,इन धार्मिक संगठनों की अनुचित कार्यशैली पर जब जब प्रश्न खड़ा किया जाता है तब तब धार्मिक संगठन व् उसके समर्थक छद्म सेकुलरवादी उपासना की स्वतंत्रता का शोर मचाते हुए लोगों का ध्यान मूल मुद्दे से हटा देते हैं ,,
”अगर देह व्यापार अनैतिक है तो आत्मा का व्यापार तो और भी अधिक घृणित है”
महर्षि दयानन्द सरस्वती , स्वामी विवेकानंद , महात्मा गांधी ,डा० भीमराव अमेडकर एवम अनेकों महापुरुषों ने धर्मांतरण को समाज  के लिए एक अभिशाप माना है ,,गांधी जी ने धर्म प्रचार पर प्रश्न चिन्ह खड़ा करते हुए कहा था कि ”अगर यह संगठन मानवीय कार्य एवं शिक्छा के आदि के द्वारा लोगों का धर्म परिवर्तन करते हैं तो मै ऐसे संगठनों को देश से चले जाने को कहूंगा क्योंकि प्रत्येक राष्ट्र का धर्म राष्ट्र के समान ही श्रेष्ठ है और भारत का धर्म यहाँ के लोगों के लिए पर्याप्त है ,,
इसी सन्दर्भ में डा० अम्बेडकर ने कहा था ”कि यह भयावह सत्य है धर्म परिवर्तन से लोग अराष्ट्रीय हो जाते हैं एवं मतान्तरण जातिवाद कि नही मिटा सकता ”इसी विषय पर स्वामी विवेकानंद ने कहा था कि  ”मतान्तरण से उस समाज की एक संख्या ही कम नही होती अपितू उस समाज का एक और शत्रु भी बढ़ जाता है ,,
उपरोक्त महापुरुषों के अलावा भी बहुत से महापुरुष जिन्हें हम अपना आदर्श मानते हैं मतांतरण के इस कुत्सित तरीके को अवैध ठहराया है ,,इन महापुरुषों का कथन पुर्णतः समसामयिक है” पूर्वोत्तर के राज्य एवं पश्चिम बंगाल इसका प्रत्यछ उदाहरण है ,पश्चिम बंगाल ,असम ,मणिपुर, नागालैंड में शर्म विशेष के द्वारा संख्या बल बढ़ाने के लिए जो खूनी खेल खेला जा रहा है यह इस बात का प्रत्यक्छ उदाहरण है कि भारतीय आत्मा का व्यापार कितनी तीव्र गति से किया जा रहा है ,,”आज देश के की राज्यों में तनाव बढ़ रहा है अलगाववादी ताकतें अपना सर उठा रही हैं और यह उस धन के जरिये किया जा रहा है जिसका कोई व्योरा किसी सरकारी संगठन/एजेंसी के पास उपलब्ध नही है ,,इस रक्त रंजित आत्मिक व्यापार एवं अलगाववाद जो अवैध असीमित धन के द्वारा प्रायोजित होता रहा है इस कृत्य पर कब अंकुश लगेगा ………..      जय भारत

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