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भारत की सीमाएं दिन प्रति दिन सिकुडती जा रही हैं ,,22 फरवरी 1962को चीन से एक एक इंच भूमि वापस लेने का भारत की संसद ने संकल्प लिया था लेकिन सत्ता के नशे में सदैव ही इसे भुलाया जाता रहा है ,,चीन ने लगभग 80000 ह्जार ,, वर्ग किलोमीटर भारतीय भूमि पर अपना अवैध कब्जा कर रक्खा है ,,और अब अरुणाचल पर भी वह अपनी गिद्ध दृष्टी जमाए हुए है अगर यही हालात रहे तो जमीनी आंकड़ों में और इजाफा हो सकता है ,,क्योंकि भारतीय सेना को निरंतर ह्तोसाहित किया जा रहा है ,,कुछ दिनों पूर्व चीन ने लद्दाख में बल प्रयोग कर भारतीय निर्माण कार्य को रुकवा दिया ,,पहले तो हमारी मदान्ध सरकार इसे नकारती रही परन्तु मीडिया के दखल के बाद वह इसे नियन्त्रड़ रेखा की भूल कहकर इस पर पर्दा डालने में जुट गई ,,और सेना अध्यक्छ से इस सन्दर्भ में ब्यान भी दिलवा दिया गया ,,भारत की इन्ही कमजोरियों को देखते हुए चीन निरंतर भारतीय भूमि पर अपना दावा कर रहा है और करता रहेगा ,,और पाकिस्तान जिसके साथ हमारे राजनीतिग्य निरंतर मधुर सम्बन्ध बनाने में प्रयत्नशील हैं ने गिलगित को चीन के हवाले कर दिया है ताकि भविष्य में अगर युद्धक स्थिति बनती है तो चीन इस भूमि के माध्यम से भारतीय सेना को पूरी तरह दबाव में ले सके ,,2005 -2006 मे भारतीय (राज- नायिकाओं) ने पाकिस्तान से गोपनीय वार्ता की जिसका खुलासा पिछले दिनों परवेज मुशर्रफ ने किया कि हम निर्णायक समझोते पर पहुंच गये हैं (शायद वह यही निर्णायक समझोता है कि वर्तमान सीमा रेखा को भारत सरकार अंतिम सीमा रेखा मान ले और अब शायद मान भी चुकी है ) यह वह भूमि है जिस पर हमारे भारतीय जांबाजों ने अपनी जान की आहुतियाँ दी लेकिन सरकार अपनी तुच्छ राजनीति के चलते उन जाबाजों की लाशों का सौदा करने से भी नही चूक रही है ,,65000 ,,वर्ग किलोमीटर भूमि को राजनीतिक स्वार्थ की भेंट चढ़ाया जा रहा है ,,(इन कुत्सित मंसूबों का इससे बड़ा सबूत और क्या होगा कि ,,भारतीय सरकार ने जम्मू काश्मीर में 30000 ह्जार सैनिकों और 10000 हजार अर्धसैनिक बलों की कटौती कर दी ,,परस्पर आवागमन के लिए पांच मार्गों को खोल दिया गया जिन पर राज्य के नागरिकों के लिए वीजा इत्यादी की व्यवस्था भी समाप्त कर दी गई ,,कृपया इन तथ्यों पर ध्यान दे ,,उमर अब्दुल्ला द्वारा बार बार जम्मू काश्मीर के पूर्ण विलय का विरोध करना ,,जम्मू काश्मीर को विवादित मानना ,,वार्ताकारों के समूह द्वारा भी ऐसा ही कुछ संदेश देना ,,केंद्र सरकार एवं एवम नेताओं की मूक सहमती ,,बार बार अमेरिका एवं यूरोपीय दूतावास के प्रतिनिधियों का काश्मीर के अलगाव वादी नेताओं से मिलना ,,केन्द्रीय सरकार द्वारा सस्त्र बल विशेषाधिकार अधिनियम को नर्म करना एवं कुछ क्छेत्रों से हटाना ,,जेल में बंद आतंकियों तथा अलगाव वादियों की एकमुश्त रिहाई का असफल प्रयाश,,पी० चिदम्बरम का यह कहना कि जम्मू काश्मीर एक राजनैतिक समस्या है इसका अलग इतिहास भूगोल है इसका समाधान भी अलग होगा,, पाक समर्थित वर्तमान आन्दोलन अमेरिका एवं चीन के धन से चल रहा है ,इस आन्दोलन को कट्टरवादी मजहबी संगठन अहले -हदीस (जिसके काश्मीर में 120 मदरसे ,तथा 600 मस्जिदें हैं जो आत्मसमर्पण किये हुए आतंकवादियों के गुट के द्वारा (हुर्रियत ,,गिलानी गुट ) के नाम पर संचालित किया जा रहा है ,,शायद यह आन्दोलन राज्य एवं केंद्र सरकार की आम सहमती से चल रहा है ,, चार लाख विस्थापितों के पुनर्वास के लिए न ही कोइ वार्ता की जा रही है और न ही कोइ कदम उठाये जा रहे हैं जिसके कारण वर्तमान समय में जम्मू काश्मीर केवल अल्पसंख्यक प्रदेश बनकर रह गया है ,,स्व० महाराजा हरी सिह ने 26 अक्तूबर 1947 यही सोच कर अपनी रियासत का भारत में विलय किया था की उनकी स्वर्गभूमि सुरक्छित रहेगी ,, आज 36315 वर्ग किलोमीटर भूमि में से आज भारत के पास केवल 26000 वर्ग किलोमीटर भूमि है ,,दिवंगत महाराजा हरी सिंह के साथ भी विश्वाश्घात किया गया क्या उन्होंने जम्मू काश्मीर का इसी परिस्थिति के लिए भारत में विलय किया था ,,आज उनका प्रिय देश 63 वर्षों से विस्थापन की मार से हताहत है क्या मानवाधिकार संगठनों को यह नही दिखाई पड़ता ,,जम्मू की कुल 60 लाख जनसंख्या में से 42 लाख बहुसंख्यक हैं जिनमे से 15 लाख विस्तापित हैं ,, क्या इन सब परिस्थियों को देखते हुए भारतीय जनमानस इसे जम्मू काश्मीर का पूर्ण ह्स्तान्तार्ण समझे ?(इतने अधिक चौंकाने वाले आंकड़े हैं की सोच कर हैरानी होती है की सरकार क्यों आखें मूदे हुए है ) पिछले कुछ दिनों से चीन ने जम्मू काश्मीर के लोगों को भारतीय पासपोर्ट पर वीजा दिए जाने की बजाय एक अलग कागज़ पर वीजा दिया जाने का चलन शुरू कर दिया है ,,देश के प्रधानमंत्री के अरुणांचल प्रदेश के दौरे पर भी चीन द्वारा उंगलियाँ उठाई गईं ,,भारत सरकार ने दलाई लामा को तवांग जाने की अनुमति तो दे दी लेकिन प्रेस कांफ्रेंस पर पाबंदी लगा दी ,सरकार के इस रवैये से तो यही जाहिर होता है कि तवांग को भारत सरकार भी देश से अलग मानने लगी है ,,यही कारण है कि चीन ने यह कह दिया कि अरुणांचल प्रदेश के सरकारी अधिकारियों को वह कभी वीजा नही देगा परन्तु आम जन को साधारण कागज़ पर वीजा देगा ,,पिछले द्दिनों चीन ने जो आधिकारिक मैप जारी किया था उसमे उसने अरुणांचल प्रदेश को चीन का ही हिस्सा ही दर्शाया था ,, भारत सरकार कि इस ढ़ुलमुल रवैये के बावजूद उस छेत्र की जनता के जाग्रत होने से कुछ उम्मीद बंधती है क्यों कि वह बार बार चीन की इस हरकत का विरोध कर रहे हैं,,अरुणांचल प्रदेश ,जम्मू कश्मीर ,सिक्किम के लोगों का भारत सरकार से गुहार लगाते लगाते गला बैठने लगा है वहां की राज्य सरकारें भी केंद्र सरकार से आग्रह कर रही हैं .,,प्रेम कुमार धूमल ने चीन की ही तरह भारत को भी रेल पटरी बिछाने का अनुरोध किया (चीन अपनी रेल लाईनों को ल्हासा तक ले आया है कुछ ही दिनों में वह भारतीय सीमाओं को छूने लगेगा हो सकता है उसे सीमाओं का ज्ञान ही न हो और वह कहां तक रेल लाईने बिछा डाले इसका तो बस अंदाजा ही लगाया जा सकता है ,,….इंडिया चाईना पर्सपेक्टिव ,,में श्री सुब्रमन्यम ने एक घटना का उल्लेख किया है,,: चीन के प्रधानमंत्री ने अमेरिका के राष्ट्रपति को कहा कि चीन साल दो साल में भारतीय सीमा का अतिक्रमण केवल इसलिए करता है ताकि भारतीय प्रतिक्रया का अंदाजा लगाया जा सके कि भारतीय सरकार की प्रतिक्रया कैसी है ,,अब तो शायद सबसे अधिक चीन के अनुकूल है ,, जय भारत
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