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होली केवल एक हर्ष एवं उल्लास का पर्व ही नही अपितु समाजिक सदभाव एवं समरसता का भी प्रतीक है ,यह पर्व बुराई को भस्मीभूत करने के लिए मानव समाज को प्रेरणा देता है ,,ऐतिहासिक परिपेछ में अगर हम देखें तो इस पर्व का प्रमाण हमे विभिन्न ग्रंथों एवम यात्रा संस्मरणों में मिलता है,,इस पर्व के आरम्भ के विषय में अनेक लोक कथाएँ प्रचलित हैं ,,इस का उल्लेख हमे नारद पुराण,भविष्य पुराण,लिंग पुराण ,वराह पुराण,जेमिनी मीमांसा इत्यादी में मिलता है,,परन्तु लोक कथाओं(भारतीय ग्रंथों में भी वर्णित) ने इस पर्व की महत्ता को अत्याधिक मुखरता से व्यक्त किया है,,हिरणकश्यप जो कि बुराई का प्रतीक था एवं प्रहलाद जो सत्य मार्ग का अनुयायी तथा हिरणकश्यप का पुत्र भी था को हिरनकश्यप ने अनेकानेक उपायों से अनेकों बार वध करने का षड्यन्त्र रचा , जिसमे सफल न हो पाने के उपरान्त उसने अपनी बहन होलिका (जो अग्नि में नही जल सकती थी) के माध्यम से सत्यामार्गी प्रहलाद को जीवित ही जलाने का षड्यंत्र रचा ,परन्तु ईश्वर के अस्टम अवतार नृसिंह ने हिरनकश्यप रूपी बुराई का वध करके सत्यामार्गी प्रहलाद को अग्नि से बचाकर उनके मार्ग को निष्कंटक तथा भय रहित किया | वैज्ञानिक आधार पर भी यह पर्व अत्याधिक महत्वपूर्ण है ,,उक्त दिवस को अनेकानेक स्थानों पर एक साथ अग्नि प्रज्वलित करने से वातावरण की अशुधियां दूर होती हैं तथा जो भी सूछ्म हानिकारक जीव होते हैं वह भी इस होलिका दहन रूपी यज्ञ से नस्ट हो जाते हैं एवं कीट पतंग जो अग्नि की तरफ आकर्षित होते हैं वह भी जल कर भस्म हो जाते हैं जिससे किसानों को भी हानिकारक कीट पतंगों से छुटकारा मिल जाता है | सम्राट हर्ष के समय में ,,रत्नावली,, में होली महोत्सव का अत्यंत मोहक वरण किया गया है ,,वस्तुतः होली पर्व भारत में हर जगह विभिन्न रूपों में आयोजित किया जाता है जैसे :-डोल पूर्णिमा ,पश्चिम बंगाल में ,,कमान पंदिगाई ,तमिलनाडु में,,होला मोहल्ला ,पंजाब में ,,कामना हब्बा ,कर्नाटक में ,,फगुआ ,बिहार में ,,महाराष्ट्र में रंगपंचमी ,,गोवा में शिमगो,,गुजरात में गोविंदा होली,,हरियाणा में दुल्हंदी ,,व्यक्त करने का माध्यम कुछ भी हो परन्तु उद्देश्य केवल एक ही होता है ,,सामाजिक समरसता एवम सौहार्द्र ,, | और कृष्ण के बिना तो होली का उल्लेख ही व्यर्थ है,ब्रिज की गलियों पुरी तरह रंगों से सराबोर हो जातीं हैं सम्पूर्ण विश्व के लोग चाहे वह जिस धर्म देश भाषा रंग के हों ब्रिज और कान्हा के रंग में मदहोश हो जाते हैं ,,बृज में होली के विभिन्न रंगों के दर्शन आपको हो जाते | भक्त शिरोमणि सूरदास जी ने अपने दिव्य नेत्रों से होली का कुछ एस तरह वर्णन किया है ,,….
हरि संग खेलति हैं सब फाग,,
इहिं मिस करति प्रगट गोपी उर अंतर को अनुराग,,
सारी पहिरी सुरंग, कसि कंचुकी, काजर दे दे नैन,,
बनि बनि निकसी निकसी भई ठाढी, सुनि माधो के बैन,,
डफ, बांसुरी, रुंज अरु महुआरि, बाजत ताल मृदंग,,
अति आनन्द मनोहर बानि गावत उठति तरंग,,
एक कोध गोविन्द ग्वाल सब, एक कोध ब्रज नारि,,
छांडि सकुच सब देतिं परस्पर, अपनी भाई गारि,,
मिली दस पांच अली चली कृष्नहिं, गहि लावतिं अचकाई,,
भरि अरगजा अबीर कनक घट, देतिं सीस तैं नाईं,,
छिरकतिं सखि कुमकुम केसरि, भुरकतिं बंदन धूरि,,
सोभित हैं तनु सांझ समै घन, आये हैं मनु पूरि,,
दसहूं दिसा भयो परिपूरन, सूर सुरंग प्रमोद,,
सुर बिमान कौतुहल भूले, निरखत स्याम बिनोद,,
उक्त पर्व केवल हिन्दुओं के लिए है यह कहना पूरी तरह असंगत है ,,उक्त पर्व उन समस्त भारतीयों के लिए है जो खुद को भारतीय कहने में गर्व का अनुभव करते हैं ,,क्योंकि भारतीय संस्कृति ने हर धर्म को आत्मसात किया उन्हें समृद्ध किया एवं यथा सम्भव सदैव उन्हें अपनाना चाहा ,,फिर चाहे वह कोई भी धर्म हो ,,और आज भी इस परम्परा का लोगों के द्वारा सम्यक निर्वहन तथा यथोचित सम्मान किया जा रहा है |
आज भी भारत के विभिन्न भू भागों में होली पर्व को सभी धर्मो के लोग समान रूप से मनाते हैं,,लेकिन कुत्सित हो चुकी राजनीति के कारण लोग अनेक उतेजित कर देने वाले असत्य भाषणों से भावावेश में आकर सत्य पथ से यदा कदा भटक जाते हैं परन्तु इसमे जन सामान्य का कोई दोष नही है यह उन भ्रस्ट राजनीतिज्ञों की देन है जो अपने तुच्छ स्वार्थ के वशीभूत होकर सदैव अशांति का माहौल कायम रखना चाहते हैं ,, आईये हम सब इस पावन पर्व को जो बुराई का दहन करने वाला एवं सत्य को आलोकित करने वाला है एक अति पवित्र संकल्प करें ,, कि हम सदैव भारतीय रहेंगे ,,केवल भारतीय ,,हमारा धर्म, जाति ,पंथ सब कुछ केवल भारतीयता होगी |
जय भारत
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