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एक नई क्रान्ति फिर लानी होगी

वैचारिक प्रवाह
वैचारिक प्रवाह
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आज बसुन्धरा फिर आहत है,
एक नई क्रान्ति फिर लानी होगी ,,
दुः शाशन ने फिर आँचल पकड़ा ,
केश रक्त से धुलवानी होगी,
एक नई क्रान्ति फिर लानी होगी ,,
खड़ा शिखन्डी मुझसे पूंछे ,
युद्ध नही फिर बजा बिगुल क्यों ,
क्या जब चीर हरण हो जाए ,
म्यान तभी फिर खाली होगी ,,
इन्द्र सभा आयोजित करके ,
मुन्नी का तुम नृत्य देखते ,
शीला का तुम यौवन तकते ,
पड़े रहो मदिरालय में तुम ,
हम को ज्योति जलानी होगी ,
एक नई क्रान्ति फिर लानी होगी ,,
बंधु बांधवों को है बेंचा,
पूर्वज के कफनों को नोंचा,
कुटिल नीति से शाशन करते ,
माँ भारत को आहत करते,
फिर सत्य ध्वजा लहरानी होगी,
एक नई क्रांति फिर लानी होगी ,,
खड़ा है दुश्मन सीना ताने,
तुम गाओ अपने अफसाने ,
सरहद पर कुर्बान हो रहे ,

हर महादेव हुंकारें होंगी ,
एक नई क्रान्ति फिर लानी होगी ,,
प्रेम तुम्हारा हुआ समर्पित ,
एक नारी के आलिंगन में ,
धिक्कारी थी तुलसी की भार्या ,
फिर सीख हमे सिखलानी होगी ,
एक नई क्रान्ति फिर लानी होगी ,,
फिर से सत्तारूढ़ हुआ है ,
महानंद व्यभिचारी राजा ,
फिर चन्द्रगुप्त का आवाहन है ,
फिर धर्म ध्वजा फहरानी होगी ,
एक नई क्रान्ति फिर लानी होगी ,,
एक नई रीती का हुआ चलन है ,
फिर बसुन्धरा का हुआ पतन है ,
व्यभिचारी नीतिग्य बने हैं ,
करें सभा में बातें जन की ,
धवल वस्त्र है नीति पतन की ,
उनके कलुषित मन की हमको,
होली आज जलानी होगी ,
एक नई क्रांति फिर लानी होगी ,,
हे ईसा के पुत्रों धिक्कार तुम्हे  ,
फिर चढ़ा रहे हो क्रास खड़ा कर  ,
क्या रक्त प्यास  है नही बुझी,
जो पुण्य पृष्ठ से बाईबिल की,
ईसा को ही दफन कर रहे ,,
शर्म करो तुम मदहोसी में ,
बर्बरता की हद लांघ चुके हो ,
ईसा को अंतर्मन में रखकर .
लिखनी नई कहानी होगी ,
एक नई क्रान्ति फिर लानी होगी ,,
याद करो उस छण को जब ,
ईसा ने था जन्म लिया ,
वही स्थिति उत्पन्न कर चुके ,
फिर क्रास वही होगा पर ,
कीलें ईसा से ठुन्कवानी होगी ,
एक नई क्रान्ति फिर लानी होगी ,,
जय भारत

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