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भईया हम उसे कितना दुरियायें (स्वान प्रजाति के ये ,,कौन सा खेत बोये हैं जो खायेंगे ,दो रोटी यहीं से ही मिलनी है न)बार बार पूंछ हिलाते हुए दरवाजे पर आ जाते हैं (उनकी यह पूंछ किसकी स्वामिभक्ति प्रदर्शित कर रही है ऊपर वाला ही जाने )मृत्यु के बाद शरीर का नाश हो जाता है (लेकिन भईया यह तो भूत बन जाते हैं ,,हे चराचर जगत के स्वामी इनकी इस गति से इन्हे मुक्त कर दो )यह भाई यह लोग नये नये मुखौटे लगाकर आ रहे हैं,,मुखौटे के अन्दर यह कौन है पहचानना मुश्किल हो जाता है अगर पहचान भी लिया तो एक द्वंद हो जाता है (द्वि )विचार वाले जो ठहरे ये भाई लोग ,,भईया ऐसे विचार तो हमको समझ ही नही आते ,,एक विचार धारा को ही समझ लें यही बहुत है(देश प्रेम की विचार धारा ) ,,वैसे यह द्वय शब्द को भी कहीं कहीं बहुत अपमानित होना पड़ता है ,,लेकिन उन्हें क्या ,वह तो इसमे गौरव का अनुभव करते हैं ,ऐसी ही विचार धाराओं से देश का बड़ा गर्क हो रहा है , भईया सिद्धांत एक ही होना चाहिए द्वि वाद में भ्रम हो जाता है (समाज आधुनिक हो रहा है ,हो सकता है भविष्य में द्विपितावाद को भी मान्यता मिल जाए ) की यह सिद्धांत आप का है या वह सिद्धांत आप का है या फिर कोई सिद्धांत ही नही है आप का ,,दो का द्वंद बहुत अहितकारी होता है ,संघर्ष की स्थिति बन जाती है ,पृथ्वी पर दो ध्रुव हैं पृथ्वी को लगातार मथ रहे हैं,ज्वालामुखियों से इन दोनों का क्रोध बाहर आ रहा है अगर कहीं सुप्त हो जाता है तो विस्फोटक स्थिति बन जाती है विध्वंश होता है अत्याधिक विध्वंश ,,दुनिया भी दो या अब कहें तो तीन ध्रुवों में बंटी है इसके कारण कितनी जाने गईं लोग आंकड़ा दे देंगे ,,लेकिन इन युद्धों से कितने प्रभावित हुए कोई आंकडा है ?
भईया दो को एक प्रकृति भी नही कर पाती बिना एक का अंत किये ,एक का तो अंत होना ही है (देश प्रेम और देश द्रोह एक ही शरीर में नही रह सकते ) लेकिन (जय हो) देश के इन टाप के मैथमैटीसियनों की द्वय को एक करने पर आमादा हैं ,,भईया एक से अनेक हो सकता है लेकिन अनेक से एक होने में एक या कुछ का अंत तो होना ही है (कुछ एक घटनावों/क्रियाओं को छोड़कर) लेकिन पता नही क्यों यह द्वय वादी माँ भारत के पीछे ही क्यों पड़े हैं ,,भईया इतिहास से कुछ सीख ले लीजिये अगर कल आप ने पाप कर दिया तो आज प्रायश्चित कर लीजिये (जीवन षण भंगुर है पता नही फिर मौक़ा मिले या नही) माँ भारत को यह द्वय वादी इस द्विवाद के झंझट में क्यों डाल रहे हैं भईया एक द्विवाद के दंश को माँ भारत झेल ही रही है ,अब दूसरा द्विवाद,,भाई अगर दिल में रंच मात्र भी देश प्रेम है तो पहले से स्थापित द्विवाद को एकवाद करने के लिए कुछ उपाय सोचिये (एक देश में दो सम्बिधान ,,हे भगवान् ) पहले ही द्विवादियों ने सत्ता का विकेंद्रीकरन करके न जाने कितने अंकों में बाँट दिया की अब इतने खटमल दास पैदा हो गये जो देश को चूश चूश कर सूखी लकड़ी बना देना चुके हैं (उन्हें तो अब केवल हाथ ही सेंकना बाकी बचा है ) राष्ट्र हित में अगर कोई देश की जड़ों में पानी डालना चाहे तो ये खटमल रूपी मानव उस में नमक मिला देंगे ,और अगर आप इनके इस कृत्य का विरोध करेंगे तो यह (भगवान् के भेजे देवदूत )आप को राष्ट्रद्रोही कह देंगे ,,भईया इन्होने इतने शब्दों का जाल बुन डाला है कि देश अवैचारिक हो गया ,,रोज नये शब्द कोष (धर्मनिरपेक्ष पंथनिरपेक्ष जातीनिरपेक्ष सम्प्रदायनिरपेक्ष) अरे भाई कहीं सापेक्ष भी हो जाओ ,,(देश न हुआ ढ़ोल हो गया पीटते ही जा रहे हैं) नही तो निरपेक्ष भजते भजते देश ही नही बचेगा एक बार (इंडिया) अब न जाने क्या होगा (लेकिन भईया वह कह देंगे वसुधैव कुटुम्बकम ) भाई यह कहने के लिए भी नसों में 99 आक्टेन दौड़ना चाहिए एक ऐसी आग जो सबको अपने में समाहित कर ले ,,नही तो गाल बजा बजा कर क्या कर लेंगे ,,चीन आपके घर में खूँटा ठोंक रहा है पाकिस्तान कश्मीर रूपी सीता का हरण करना चाहता है बांग्लादेश जनसंख्या निर्यात कर रहा है अमेरिका अपना हित आपके द्वारा साध रहा है (सभी कह रहे हैं आप तो आप हैं हम आपके बाप हैं ) और आप हैं की गाल बजाए जा रहे हैं (एक उदघोष करिये शंख ध्वनी जैसा उदघोष,,लेकिन शंख बजाने के लिए भी फेफड़े में संकल्प रूपी ताकत का होना अनिवार्य है नही तो प्रयाश करने पर हार्ट अटैक की सम्भावना बढ़ जाती है सुना है शंख ध्वनी से बैक्टीरिया मर जाते हैं तो भाई ऐसे बैक्टीरिया को मार दीजिये जो देश को अन्दर ही अन्दर खाए जा रहे हैं ) देश के स्वतंत्र होने से पहले से ही देशी देशी का नारा लगता रहा है वैज्ञानिकों ने भी सिद्ध किया है की देशी वस्तु स्वास्थ्य के लिए हितकर है ,,संकर नशल या विदेशी नशल के दूरगामी विनाशकारी परिणाम होंगे तो भाई देशी ही अपनाओ |
द्वंद द्वय का मचा हुआ है ,
राष्ट्रवाद कुछ बचा हुआ है ?
द्वय को एक करो हे वीरों ,
देश द्वंद में फंसा हुआ है ,
राष्ट्र प्रेम की ज्योति जलाओ ,
पाखंडी को दूर भगाओ ,
तिलक और वल्लभ का देश ,
राष्ट्र प्रेम वैचारिक एक्य ,
व्याघ्र भेंड का चेहरा ओढ़े ,
हमसे मधुरी वाणी बोले ,
अंतर में विष भरा हुआ है ,
घात लगा कर पड़ा हुआ है ,
उसके घाव अभी भी रिश्ते ,
अंतर में हैं ज्वाला भरते ,
राष्ट्र द्वन्द को दूर करो ,
द्वय को मिल अब एक करो ,,
देशवाशी को केवल युद्ध के समय में ही नही हमेशा राष्ट्रप्रेम को अपने अंतर में रखना चाहिए
जय भारत
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