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माँ भारत को समर्पित

वैचारिक प्रवाह
वैचारिक प्रवाह
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bharat_mata(1)
यह कैसा देश हमारा है ,यह कैसी आजादी है ,
गर आया नाम जुबां पर तो,वो कहते ये उन्मादी हैं ,,
उन्मादी तो राणा भी था,उन्मादी रानी झाँसी भी ,
हम उनकी याद संजोये हैं,वो कहते हम कटुवादी हैं ,,
जिनसे जग सारा थर्राया ,वह असली भारत वासी हैं ,
हम शीश कटाते शरहद पर,वो कहते हम बकवादी हैं ,,
धरती जिनसे लाल हो रही,वो असली लाल हमारे हैं ,
निज आस्था की हम बात करें,वो कहते ये विष वादी हैं ,,
जिस मंदिर निष्कासित थे ,वो अपना मंदिर मांग रहे ,
वो कहते हैं ये मेरा है ,हम किससे फरियाद करें ,,
गाँधी का सपना राम राज्य,पर अब तो रावण राजा है,
देश हमारा उसके हाथों ,हम कैसे भारतवासी हैं ,,
उनको आती लाज नही ,यह भारत देश भी न्यारा है ,
जिसने विश्व को शीछा दी,वो इतिहास हमारा है ,,
कण्व जाबाली भारद्वाज ,से शिछित भारत पावन है ,
वशिष्ट व्याश का है प्रकाश,शौनक संदीपन भी मन भावन हैं,,
देश द्वेष में धर्म है बंधक ,संस्कृति अब दरबारी है ,
नृसिंह जगो हे अर्जुन आओ ,फिर धरती पापों से भारी है,,
शासक अब ध्रितराष्ट्र हुआ है ,जीवित हो गये कौरव सारे,
शुक्राचार्य फिर बने गुरु हैं ,आर्ष पुरुष अनुयायी है ,,
प्रत्यंचा खींचो पुरुषोत्तम ,कृष्ण बनो उपदेशक फिर ,
संगठित करो सुग्रीव पुनः तुम ,माँ भारत तुम्हे पुकारी है,,

जय माँ भारत भारती

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